"दहेज ना मिलने के कारण महिला को जिंदा जलाया"
"एक 80 साल के बुजुर्ग के साथ संपत्ति विवाद के चलते की घरेलू हिंसा"
यह कुछ इस तरह की खबरें हम रोज अकबर में देखने मिलती है। ये सब और कुछ नहीं घरेलू हिंसा के मामले है।
घरेलू हिंसा आज हर समाज में मौजूद है। यह न केवल विकासशील देश की समस्या है बल्कि विकसित देशों में भी बहुत प्रचलित है। इसका का तालुक सिर्फ शारीरिक हिंसा से नहीं बल्कि मानसिक , भावनात्मक दुर्व्यवहार से भी है।
महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा :
हमारी भारतीय संस्कृति हमें महिलाओं का सम्मान करने की सीख देती है। स्त्रियों को देवी का स्वरूप समझा जाता है।
पर फिर क्यों देश में सबसे ज्यादा घरेलू हिंसा महिलाओं के साथ ही होती है ? क्या हमारी घर की देवी के स्वरूप के साथ यह दुर्व्यवहार उचित है? जवाब हम सबके पास है " नहीं "। तो फिर क्यों महिलाओं को घरेलू हिंसा का शिकार बनाया जाता है ?
हम सब एक पुरुष प्रधान समाज के हिस्सा बन चुके है जिसका मतलब है की यहा पुरुषों को अधिक महत्ता दी जाती है। यह समाज में पुरूषों का ही राज होता है और इसके चलते जब कोई महिला इस समाज में अपनी जगह बनाती है तो कुछ लोगों को वह सुहाता नहीं और इस तरह की सोच वाले लोग स्त्रियों को घरेलू हिंसा के सहारे दबाने का प्रयास करते हैं।
दहेज प्रथा भी एक कारण है जो घरेलू हिंसा को बढ़ावा देती है।
महिलाओं को शारारिक शोषण , भावनात्मक शोषण , मनोवैज्ञानिक दुर्व्यवहार अपशब्द आदि समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
"वह हर दिन एक जंग लड़ती है
वह खुद के ही घर मैं खुदको महफूज रखने की कोशिश करती है"
घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 ( Domestic violence act 2005 )
घरेलू हिंसा की बढ़ती घटनाओं को देख भारत सरकार ने 2005 में घरेलू हिंसा अधिनियम बनाया था। इसे 26 अक्टूबर 2006 को संपूर्ण भारत में लागू किया गया था।
अगर किसी महिला को परिवार द्वारा अपशब्द कहे जाए या उसे किसी अन्य तरह से प्रताड़ित किया जाए तो वह घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत उन पर केस दर्ज कर सकती है।
क्या घरेलू हिंसा से पीड़ित सिर्फ महिलाएं ही हैं?
यह बात से कोई दोहराई नहीं है की घरेलू हिंसा से सबसे ज्यादा पीड़ित महिलाएं है लेकिन अब समाज में बच्चे बुजुर्ग और पुरूषों के खिलाफ भी घरेलू हिंसा के मामले बढ़ते रहे है।
देखा जाता है की जब भी कोई पुरुष घरेलू हिंसा से पीड़ित होता है तो वह यह समाज के डर से अपने अंदर ही दबाए रखना बेहतर समझता है और अगर बताता भी है हो अधिकतर लोग विश्वास नहीं करते और उस पीड़ित का ही मजाक उड़ाते है। समाज में माना जाता है कि पति या पुरुष कभी भी किसी महिला की हिंसा का शिकार नहीं हो सकता और इसलिए उसे कई सामाजिक कानूनों या आर्थिक मदद से वंचित रखा जाता है क्योंकि वह पुरुष है।
सरकार ने महिलाओं के लिए घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 बनाया है पर पुरुषों के लिए ऐसा कोई कानून नहीं बनाया गया है। इसलिए सरकार को इस तरफ भी ध्यान देना चाहिए कि पुरुषों के लिए भी ऐसा कोई कानून बनाया जाए।
राष्ट्रीय महिला आयोग की रिपोर्ट ( National Commission for Women ) :
राष्ट्रीय महिला आयोग को 2021 में महिलाओं के खिलाफ अपराध की लगभग 31000 शिकायतें मिली जिनमे से घरेलू हिंसा से संबंधित 6633 मामले मिले।
घरेलू हिंसा से पीड़ित व्यक्ति के बारे में समाज का नजरिया अच्छा नहीं है। लोग दोषी को समझाने की बजाय पीड़ित को ही समझाने लगते है।
देश में हो रहे इस अपराध के खिलाफ आवाज उठाना अब जरूरी है।
इसे खामोश रहकर सहन करना गलत है।
लोगों की मानसिकता को बदलना अब जरूरी है।
धन्यवाद🙏
संगम शर्मा 😊
Keep it up bro ✨❤️
ReplyDeleteAdbhut
ReplyDeleteThanks 😊
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