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Showing posts from November, 2021

"लोग क्या सोचेंगे" (what people think about us)

"लोग क्या सोचेंगे" "मुझे आगे बढ़ना नहीं है लोग क्या सोचेंगे मुझे कुछ हटकर करना नहीं है लोग क्या सोचेंगे" यह " लोग क्या सोचेंगे " इन तीन शब्दों ने लोगों को अपने ख्वाबों को पूरा करने से रोक रखा है। इन तीन शब्दों ने लोगों को आगे बढ़ने से रोक रखा है।  आखिर क्यों करते है हम इतनी चिंता इन लोगों की सोच की ? आखिर क्यों इतनी अहमियत है इन लोगों की सोच की? आइए जानते है कुछ कारण: • डर (fear) " लोग क्या सोचेंगे " यह एक डर बना दिया है लोगों को कुछ हटकर करने से रोकने के लिए । " एक डर जिससे तुम उम्रभर डरो   एक डर जिससे तुम आगे ना बढ़ो"     • सामाजिक स्वीकृति (social acceptance)  हम सब समाज में अपनी जगह बनाने के लिए हमेशा झुटे रहते है। पर जब इस समाज में कुछ नया करने की सोचते है तो फिर सवाल वही आता है कि " लोग क्या सोचेंगे " • एक दूसरे से तुलना ( comparison with others) एक कारण यह भी है कि हम खुद की तुलना दूसरो से भी करते है । खुद की चीजो में हमें कभी संतुष्टि नहीं मिलती । और इसी कारण हम खुद को कम सफल समझते ह...

धर्म और आस्था के नाम पर धंधा (Business in the name of religion and faith)

 धर्म और आस्था आखिर क्या हैं ये शब्द? क्या है इनकी व्याख्या? वेद पुराणों की बात की जाए तो धर्म की परिभाषा कुछ इस तरह है "किसी भी वस्तु के स्वाभाविक गुणों को उसका धर्म कहते है, जैसे अग्नि का धर्म उसकी गर्मी और तेज है। वही आस्था की बात की जाए तो इसका अर्थ है ,किसी विषय- वस्तु के प्रति विश्वास का भाव होना।    समाज के लिए धर्म और आस्था की परिभाषा अलग - अलग है,पर मैं अगर मेरी बात करू तो मेरे लिए धर्म और आस्था की परिभाषा कुछ यूं है कि धर्म स्थिर है वहीं आस्था चंचल प्रकृति की है। इसलिए आस्था कब विश्वास से अंध विश्वास का रूप ले लेती है पता नही चलता।    आजकल के युग में मनुष्यों ने धर्म और आस्था की परिभाषा को अपने सुविधानुसार रूपांतरित कर लिया है। और इसका सबसे ज्यादा फ़ायदा धर्म के ठेकेदार उठा रहे है। आज धर्म और आस्था के नाम पर इसका व्यवसाय किया जाता है । आश्चर्य की बात तो ये है की पढ़े लिखे लोग भी इनकी बातों में आ जाते है। भगवान के नाम पर यह धर्म के ठेकेदार धर्म और आस्था की दुकानदारी चलाते है जो कि काफी शर्मनाक है।    अत: मेरी तो यह धर्म के ठेकेदारों से यही गुज...